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गाँधी का नाती

बोल कि लब आजाद हैं...
बोल कि लब आजाद हैं...
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चिकना चुपड़ा लल्लू खुद को
गाँधी का नाती कहता है
गांव में आकर खुदको
हम सबका सच्चा साथी कहता है

जितने का घर-बार हमारा
उतने का तो कुरता उसका
दिल्ली और सीकरी उसकी
रोटी उसकी ज़र्दा उसका

हमने कहा कि महंगाई है
भकुआ चुप्पैचाप रहा
हम बोले कि घर नाहीं है
भकुआ चुप्पैचाप रहा
हम बोले गगरी खाली है
भकुआ चुप्पैचाप रहा
बस्ती का बच्चा-बच्चा है
ठण्ड-भूख से कांप रहा

कलावती से प्यार जताकर
कुछ बच्चों को गोद उठाकर
कई बार मेरे ही घर को
वह अपना घर-बार बता कर
चला गया है मूर्ख बनाकर
इसके सारे राज़ पता कर

कौन है यह अंग्रेज का बच्चा
सरपत को गन्ना कहता है
किस चक्कर में आता है यह
तरह-तरह चालें चलता है
अख़बारों में काहे इसका
बड़ा-बड़ा फोटू छपता है

आता है हर साल गांव में
खूब तमाशा करता है
सब बच्चों से रामराज का
झूठा वादा करता है
कहीं मुश्किलें सारी हमने
नहीं किसी पे कान दिया
अगले ही दिन अपना तम्बू
बगल गांव में तान दिया

आठ महीने से घर में
कोई भी सालन नहीं बना
कोदौ-किनकी नाहीं मयस्सर
कहाँ मिलेगा खीर-पना
कुछ-कुछ दिन पर भूख के मारे
कोई न कोई मरता है
आँख बंद है कान बंद है
और ज़मीर पर पर्दा है

अबकी आये टेन्ट लगाये
सारे बल्ली-बांस तोड़ दो
बंद करो यह नाटक अब
हम सबको अपने हाल छोड़ दो

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